इस संसार में भगवान् की सत्ता को सदैव चुनौतियाँ मिली हैं। सतयुग में हिरण्यकश्यपु -हिरण्याक्ष, त्रेता में रावण-कुम्भकरण तथा द्वापर में कंस- शिशुपाल जैसे असुर इसके कुछ उदाहरण हैं। किन्तु कलियुग कुछ अलग है। पूर्व युगों में लोग जानते थे कि भगवान् का विरोध करने वाले ये लोग असुर हैं, किन्तु कलियुग में भगवद्विरोधी लोग छिपे वेष में रहते हैं। सूट-बूट पहनकर, टाई लगाकर तथा बड़े-बड़े पद-पदवियाँ हासिल करके से लोग समाज के अगुवा बने बैठे हैं और अपनी कलम की ताकत से भगवान् के अस्तित्त्व को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं।
पूर्वकाल में हुए असुरों तथा आधुनिक “असुरों” में एक अन्तर और भी है। पूर्वकालिक असुर जानते थे कि भगवान् विष्णु परम भगवान् हैं और उन्हें नष्ट कर पाना असम्भव है, तथापि मूर्खतावश उन्हें विश्वास होता कि वे भगवान् को मार पायेंगे। परन्तु आधुनिक असुर भगवान् के विषय में कुछ नहीं जानते। वे केवल भगवान् से ईर्ष्या करते हैं। इतनी अधिक की वे दूसरों द्वारा भगवान् की पूजा आदि को सहन नहीं कर पाते और तथाकथित विज्ञान के बलबूते पर भगवान् की सत्ता को समाप्त करने का प्रयास करते हैं।
खैर, कुत्ते भौंकते हैं और हाथियों का कारवाँ चलता रहता है। सृष्टि के असंख्य लोकों में अनगिनत देवी-देवता, ऋषि-मुनि, मनुष्य आदि भगवान् की सत्ता को स्वीकार करके उनके साथ सामंजस्य में रहते हैं। यदि भारत के कुत्ते, बिल्ली, सूअर और गधे एकत्र होकर घोषणा करें कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कोई अस्तित्त्व नहीं है तो हमें नहीं लगता कि श्रीमान् मोदी यह जानकर चिन्तित होंगे।
एक अन्तर और है पूर्वकालिक एवं आधुनिक “असुरों”में। पहले समय में ये असुर इतने शक्तिशाली होते कि उनका वध करने के लिए स्वयं भगवान् अवतार लेते थे। परन्तु आजकल के मच्छर के काटने या दिल के दौरे से ही यमलोक को प्राप्त हो जाते हैं।
भगवान् पर विश्वास करने के लिए कुछ लोग शास्त्रों के वचनों पर विश्वास करते हैं। आप कहेंगे कि किसने देखा है कि शास्त्र किसने लिखे हैं। चलिए मान लेते हैं। किन्तु ऐसे अनेक प्रमाण हैं जो सहज ही सिद्ध करते हैं कि इस सृष्टि के निर्माण एवं संचालन के पीछे अवष्य कोई महान् शक्ति है।ऐसे अनेक प्रमाणों से कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं। इन्हें पढ़िए। इन पर मनन कीजिए। अपने चारों ओर देखिए, आपको भी भगवान् की सत्ता सिद्ध करने वाले अनेक उदाहरण मिल जायेंगे। क्या ये सब संयोग से हो सकता है? अथवा ऐसे उदाहरण सिद्ध करते हैं कि इस अदभुत सृष्टि के पीछे किसी बुद्धिमान व्यक्ति का मस्तिष्क है? क्या यह सिद्ध नहीं करता कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक सुव्यवस्थित व्यवस्था द्वारा संचालित है?
एक छोटे से बीज में बरगद का पूरा वृक्ष छिपा रहता है। और उस वृक्ष में वैसे ही सैकड़ों-हजारों बीज होते हैं जो उसके जैसे विशाल वृक्ष उत्पन्न कर सकते हैं। क्या हम दूर-दूर तक भी ऐसी मशीन बना पाये हैं जो अपने-आप अपने जैसी मशीन पैदा कर सके?
गाय ऐसी घास खाती है जो कहीं भी उपलब्ध है, और उसे खाकर वह ऐसे पौष्टिक दूध में बदल देती है जो न केवल समग्र मनुष्य जाति का पोषण करता है अपितु उसके बिना वह अनेक स्वादिष्ट व्यंजन बनाने से वंचित रह जायेगा। क्या हमने भी तक कोई ऐसी मशीन बनायी है जो घास को विशुद्ध दूध में परिवर्तित कर सके?
हमारे द्वारा बनाये गये हवाई जहाज अकसर अपने मार्ग से भटक जाते हैं अथवा हवा में अन्य हवाई जहाजों से टकरा जाते हैं। परन्तु इन चिन्नी हवाई जहाजों से करोड़ों गुना बड़े ग्रह अंतरिक्ष में रूई के गोलों की तरह उड़ रहे हैं। वे न तो कभी अपने मार्ग से भटकते और न ही आपस में टकराते हैं।
सूर्य जितना प्रकाश छोड़ता है वह हमारी कल्पना से परे है। यदि हम दुनिया के सारे मानव निर्मित बल्ब, ट्यूब आदि जला ले फिर भी वे सूर्य द्वारा छोड़े जाने वाले प्रकाष एवं उर्जा के एक-करोड़वें अंश के निकट नहीं आते।
किसी भी प्राणी या मनुष्य के शरीर में भगवान् ने ऐसी व्यवस्था की है कि नर के वीर्य के माध्यम से मादा के गर्भ में बिल्कुल उनकी जाति का शरीर विकसित हो जाता है। मनुष्य का उदाहरण लीजिए। उपयुक्त परिस्थितियाँ होने पर नौ महीने में स्त्री के गर्भ में ऐसे शरीर का निर्माण हो जाता है जिसमें दो आँखें, कान, नाक, फेफड़े, दिल, गुर्दे, यकृत आदि सब अंग होते हैं। सिर पर बाल, अँगुलियों में नाखून तथा शरीर में प्राण होते हैं। नौ-महीने में पूरी तरह तैयार होकर वह सुव्यवस्थित प्रकार से बाहर भी निकल आता है।
प्रत्येक प्राणी जन्म से ही अपनी जाति के तौर-तरीकों से अवगत होता है। उनका स्वभाव कभी नहीं बदलता। उदाहरण, प्रत्येक पक्षी अलग प्रकार से घोंसला बनाता है। उसके बच्चे बिना किसी प्रशिक्षण के बड़े होने पर वैसा घोंसला बनाने लगते हैं। उनके खाने, सोने, उड़ने आदि की आदतें बिल्कुल अपनी जा के पक्षियों से मिलती हैं।
मनुष्य ऑक्सीजन लेता है और कार्बन डाइअऑक्साइड छोड़ता है। पेड़-पौधे कार्बन डाइऑक्साइड पीते हैं और प्रकाष- संश्लेषण की विधि द्वारा उसे ऑक्सीजन में बदलकर हमें प्रदान करते हैं। सृष्टि में परस्पर सहयोग का ऐसा उदाहरण कहाँ देखने मिलेगा? ऐसा कारखाना कहाँ मिलेगा जो मनुष्य के कूड़े-करकट को वृक्षों का भोजन बना दे और वृक्षों के कूड़े-करकट को मनुष्यों का भोजन बना दे। आज तक मनुष्य ऐसे कारखाने का निर्माण नहीं कर पाया है।
इसलिए दुनिया के बुद्धिजीवी वर्ग ने नम्रतापूर्वक सृष्टि के पीछे भगवान् की सत्ता को स्वीकार किया है।
मानवीय मस्तिष्क अरबों कोशिकाओं से बना है…. और उनमें से प्रत्येक कोशिका आज पृथ्वी पर पाये जाने वाले किसी भी कम्प्यूटर से अधिक शक्तिशाली एवं जटिल है।
– डॉ. टोनी बुजोन, ब्रिटिष
यदि आप ध्यानपूर्वक विचार करेंगे तो विज्ञान ही आपको भगवान् पर विष्वास करने के लिए बाध्य कर देगा।
– लॉर्ड केल्विन
भौतिकी के सारे नियमों के पीछे एक पूरिपूर्ण मस्तिष्क कार्यशील है।
– अल्बर्ट आइन्सटिन
सूर्य, ग्रहों तथा उल्काओं से सजा यह सुन्दर ब्रह्माण्ड किसी शक्तिशाली एवं बुद्धिमान व्यक्ति के निर्देष एवं नियंत्रण में ही कार्य कर सकता है….. वह व्यक्ति प्रत्येक वस्तु पर शासन करता है। वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं अपितु प्रत्येक वस्तु का स्वामी है। इसलिए उसे परमेश्वर भगवान् कहा जाता है। सम्पूर्ण सृष्टि का शासक।
– न्यूटन
वेदान्त सूत्र में कहा गया है, जन्माद्यस्य यतः – “भगवान् प्रत्येक वस्तु के मूल स्रोत एवं कारण हैं।” ब्रह्म-संहिता (५.१) कहती है –
“भगवान् का कोई स्रोत नहीं है और वे प्रत्येक वस्तु के परम कारण हैं।”
This is an institution established under the guidence of His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada, Founder and Acharya of International Society for Krishna Consciousness (ISKCON), spreading the teachings of Bhagavad Gita
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